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लेखनी कहानी -16-Apr-2022 राजनीती और आम आदमी

लघुकथा

शीर्षक  = राजनीती  और आमआदमी

जेनर = सामाजिक 

शान्तिनगर  में आज  शांति  पसरी पड़ी  थी  क्यूंकि आज  सब  लोग मतदान  करने  गए  थे क्यूंकि उस राज्य का चीफ मिनिस्टर चुना  जाना था  पांच  साल बाद । महीनों से चल  रही  रैलियों, शराबो, मुर्गा मुसल्लम  खिला पिलाकर  अब तक  जिन लोगो को पार्टियों ने अपना किया था  आज  उनके इम्तिहान का दिन था।


मतदान  शाम  चार  बजे  तक  चला  थोड़ी  बहुत  धक्का  मुक्की, लड़ाई  हुयी बाद में सब  सही  हो गया । पूलिंग  बूथ  पर  ये सब  होना तो आम  बात है ।

वही  पर खड़े  दो   लोग हरिशंकर और मनमोहन  जिनके घर  आमने  सामने थे  किन्तु वो अलग  अलग  पार्टी को सपोर्ट करते  थे  इसी चक्कर  में वो पडोसी  से ज्यादा दुश्मन  बन  चुके  थे  इन दिनों जब  से इलेक्शन  कैंपेन चल  रहे  थे । कहने  को दोनों  मजदूर  वर्ग के थे  लेकिन राजनीती  ने उन दोनों को दुशमन  बना  दिया था  एक कहता  कि मेरी पार्टी अच्छी है  तो दूसरा  कहता  मेरी।


जैसे तैसे करके  मतदान  ख़त्म  हो गए। और दोनों के दोनो अपनी अपनी पार्टी के जीतने  का इंतज़ार  करने  लगे ।

दोनों आपस  में लड़ते  अगर  कोइ एक भी  किसी कि पार्टी को गलत  कहता  या हारने की दुआ मांगता। उन दोनों की पत्नियां अच्छी थी वो छिप  छिपा  कर  मिलती थी  हरिशंकर  की पत्नि माँ बनने  वाली थी  उसे कुछ  दिन पहले  ही पता  चला था तो वो छिप  कर हरिशंकर  से, मनमोहन  की पत्नि के लिए  मिठाई  लायी थी ।

"पता  नही इन दोनों को क्या हो गया  है  आपस  में ही लड़ रहे है ये जानते भी है कि जीतने के बाद भी इन्हे मेहनत मजदूरी ही करके अपना पेट पालना है भला ये नेता किसी आम  आदमी  के हुए  है  जो इनके होंगे। गरीबो  के तो काम गरीब  ही आते  है  पता  नही ये बात कब  ये दोनों समझें गे " हिरीशंकर  कि पत्नि ने कहा 

"मुझे तो डर  है  कि जब  मतदान खुल  जाएंगे और कोइ एक जीते गा तब  क्या होगा " मनमोहन  कि पत्नि ने कहा ।

इसी तरह  दिन गुज़रते  गए  दोनों आपस  में ही लड़ते  रहे  ये जान कर  भी कि कोइ भी पार्टी  जीते फिर  भी  रहना  दोनों को इसी मोहल्ले में है ।

आखिर  कार मतदान  खुल  गए  और हरिशंकर  की पार्टी जीत  गयी  उसके बाद तो उसने मनमोहन  के दरवाज़े  पर  रख  कर  तीन  दिन  तक  पटाखे फोड़े  उसे खूब  तंग  किया, रास्ते में, बाजार में हर  जगह  उसे परेशान  करता ।

कई  बार तो मार पिटाई  होने से बची। हरिशंकर  अपनी पार्टी का धौंस दिखाता  जबकी  उसे कोइ जानता भी  नही था  बस  थोड़ी  बहुत  सलाम  दुआ होती थी  उस पार्टी के लोगो से वो भी  वोट  के लालच  में। उसी सलाम  दुआ नमस्ते  को हरिशंकर  समझता  कि पार्टी में उसकी भी  कोइ जगह  है । इसी लिए  वो हर  किसी को ये कह  कर  धौंस दिखाता  तू  जानता है  मैं किस पार्टी से हूँ उसके इसी बर्ताव की वजह से मोहल्ले का कोइ भी  घर  उससे मिलता नही था ।

उसकी पत्नि भी  उससे तंग आ  गयी  थी  और भगवान  से दुआ करती  की कोइ चमत्कार  करदे  जो मेरे पति  को उसकी औकात  याद आ  जाए और वो संभल जाए और जान सके  की ये मोहल्ले वाले ही ज़रुरत  पड़ने पर काम आएंगे ना की कोइ चेयरमैन, मेयर या फिर C M जिसको हमने  वोट  देकर  जिताया है । हमारा  काम तो सिर्फ वोट  देना था जो हमने  दे दिया अब चाहे  कोइ जीते  या हारे हमें तो अपना घर  खुद  ही चलाना  है  एक दूसरे  की मदद  के साथ तो हम  क्यू इन झूठे  नेताओं की बातो में आकर  अपने मोहल्ले दारों और अपने ही जैसे लोगो से क्यू लड़े  जो हमारे  हर  सुख  दुख  के साथी  है ।


कुछ  दिन बीत  गए। हरिशंकर  की पत्नि के बच्चे  का इस दुनिया में आने  का समय  आ  गया । एक रात ठीक  3 बजे  हरिशंकर  की पत्नि को प्रसव  पीड़ा  शुरू  हो गयी ।

उसकी चीख  सुन हरिशंकर जागा और तुरंत  सरकारी  अस्पताल फ़ोन लगाया एम्बुलेंस के लिए  लेकिन वहा  के कर्मचारी  ने ये कह  कर  मना  कर  दिया " कि सब  लोग सौ रहे  है  सुबह  आना  "

तब  हरिशंकर ने कहा  " तू  जानता है  यहाँ के CM को जिताने के लिए  अपने घर  वालो के वोट  डलवाये  थे  और तू  मुझे  मना  कर  रहा  है  "


" ओह भाई  नए  हो क्या ऐसे अगर  हर  कोइ इंसान मेरे पास  आकर  ये कहे  कि तुम्हारे CM को जितवाने में मेरा हाथ  है  क्यूंकि मेने उसे वोट  दिया था  तो फिर  हम  तो सारा दिन काम ही करते  रहेंगे  और हाँ दोबारा फ़ोन  मत  करना  एम्बुलेंस सुबह ही आएगी  और कोइ डॉक्टर भी  नही है  " कर्मचारी ने कहा 


हरिशंकर  भागता  हुआ गाली के चेयरमैन  के घर  गया  और उसके watchman से भी  यही  कहा  जो उस कर्मचारी  से कहा  था ।

उस वॉचमैन ने कहा  " साहब  सौ रहे  है  अभी  सुबह आना  जो परेशानी  है  सुबह  बताना  और हाँ ऐसे ही मुँह उठा  कर  मत  आना  नहा  धोकर  अच्छे कपडे  पहन  कर  आना  "

"भाई  समझा  करो  मेरी पत्नि प्रसव  पीड़ा  से मर रही  है  तुम्हारे साहब और हमारे  चेयरमैन  मुझे  जानते है  क्यूंकि उनकी रैलियों में मेने खूब  प्रचार  किया था  दिनों रात वो एक बार अस्पताल फ़ोन  कर  देंगे तो एम्बुलेंस आ  जाएगी " हरिशंकर  ने कहा 

" तुम तो बड़े  बेवक़ूफ़  हो, भला  नेता लोग जीतने  के बाद किसी गरीब  को पहचानते  है  क्या?, वो तो सिर्फ मतदान  के खातिर  गरीब  बस्तियों का दौरा करते  है और उन्हें आपस  में लड़ा  कर  जीत  हासिल करते  है  ताकि जीतने  के बाद इन आलिशान  घरों  में सुकून  से रह  सके  फिर  उन्हें गरीबो  कि याद कहा  आती  है , जाओ जाकर  अपने किसी पडोसी  को मदद  के लिए  बुलाओ शायद  तुम्हारी पत्नि को बचा  सके  इन नेताओं के घरों के चक्कर काटते रहोगे तो पत्नि और बच्चे दोनों से हाथ धो बैठोगे " उस चौकीदार ने कहा


हरिशंकर  को सदमा  लगा अपनी पत्नि की चीखे  उसके कानो में गूँज  रही  थी  वो अपने होने वाले बच्चे  के खातिर  अपने मोहल्ले वालो के पास  गया  लेकिन सब  ने उससे मुँह मोड़ लिया और कहा  जाओ तुम अपनी पार्टी वालो के पास  जिनकी तुम धौंस दिखाते  फिरते  थे  उन्ही से मदद  मांगो हमारी नींद  ख़राब  मत  करो। सब  जगह  से उसे यही  जवाब  मिला।

आखिर  में वो मनमोहन  के दरवाज़े  पर  आया  और उसे अपनी पत्नि की हालत  बताई । ये सुन उसकी पत्नि हरिशंकर  के घर  जाने लगी  तब  मनमोहन  ने उसका हाथ  पकड़ा  और कहा  "कोइ ज़रुरत  नही है  इसकी मदद  को जाने के लिए  बुलाये उन्हें ही जिनके लिए  इसने सब  मोहल्ले वालो से नाता तोड़ लिया था  अच्छा हुआ मेरी पार्टी हार गयी  वरना  मैं भी  तेरे जैसा हो जाता।"

उसकी पत्नि कहती  "आप  दोनों की बिन बात की दुश्मनी  की वजह  से दो लोग अपनी जान से हाथ  धो  बैठेंगे । कोइ नही आने  वाला मदद  को हम  लोगो को ही कुछ  करना  होगा सरकारी  अस्पताल के डॉक्टर भी  दारू पीकर  टुन होंगे हमें ही कुछ  करना  होगा। आप  दोनों जाकर  मोहल्ले की कुछ  औरतों को बुला लाओ कहना  दुशमनी  बाद को निभा  लेना अभी  किसी की ज़िन्दगी और मौत  का सवाल  है गरीबो  के गरीब  ही काम आते  है  बुरे समय  में "


मनमोहन  और हरिशंकर  अपनी दुश्मनी  भुला  कर  घर  घर  जाकर  कुछ  औरतों को ले आये  सब  ने यही  कहा  अगर  आज  तेरी पत्नि का सवाल  नही होता तो हम  हरगिज़  तेरी मदद  को नही आते  क्यूंकि तूने  हमें बहुत  परेशान  किया था  अपनी पार्टी का धौंस  दिखा  कर ।


मोहल्ले वालो और मनमोहन  की पत्नि के सहयोग  की वजह  से हरिशंकर  की पत्नि ने घर  पर  ही एक फूल  सी बच्ची  को जन्म दिया।

हरिशंकर  अपने किये पर  शर्मिंदा  था  और रो कर  सबसे  माफ़ी मांगी और बोला"  मैं समझ  गया  चाहे  कोइ भी  पार्टी जीत  जाए सब  एक जैसे ही होते है  मतलब  परस्त  हम  आम आदमियों को लड़ा  कर  आपस  में खुद  वोट  ले कर  आराम  से अपने आलीशान  घरों  में सोते है  और ज़रूरत  पड़ने पर  काम नही आते  अगर  काम आते  है तो  अपने ही लोग, अपने मोहल्ले वाले फिर  चाहे  वो किसी भी  धर्म , जात का क्यू ना हो सब  भूल  कर  एक दूसरे  की मदद  को जुट जाते है ।"


उसको सीधी  राह पर  आता  देख  हरिशंकर  की पत्नि ने हाथ  जोड़ कर  भगवान  का धन्यवाद  किया और सब  लोग खुश  थे  की मोहल्ले में लक्ष्मी आयी  है जिसने सब  को दोबारा से एक कर  दिया नफरतो  की आग  बुझा  कर  प्रेम रस  भर  दिया और समझा  दिया की आम  आदमी  ही आम आदमी  का सहारा  होता है  बुरे वक़्त का बाकी सब  तो बस  तमाशा  देखते  है ।






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8 Comments

Shnaya

02-Jun-2022 04:04 PM

👏👌

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Shrishti pandey

24-May-2022 10:25 AM

Nice

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Reyaan

10-May-2022 11:54 AM

👏👌👌

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